write eassy on vamana ekadashi.

मित्र!
आपने स्वयं अपने प्रश्न का उत्तर दे दिया है। आशा करते हैं कि यह आपकी पूरी सहायता करेगा।

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वामन एकादशी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को कहा जाता है। यह तिथि 'पद्मा एकादशी', 'जयन्ती एकादशी' या 'परिवर्तनी एकादशी' भी कही जाती है। वामन एकादशी के व्रत को करने से सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। इस तिथि में भगवान वामन देव का पूजन अवश्य करना चाहिए। वामन एकादशी के दिन यज्ञोपवीत से भगवान वामन की प्रतिमा स्थापित कर, अर्ध्य दान करने, फल-फूलअर्पित करने और उपवास आदि करने से व्यक्ति का कल्याण होता है।
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एक अन्य मत के अनुसार भादों मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन यह व्रत किया जाता है। एकादशी तिथि के दिन किया जाने वाला वामन एकादशी व्रत 'पद्मा एकादशी' के नाम से भी जाना जाता है। जबकि एक अन्य मत यह कहता है कि एकादशी व्रत होने के कारण इस व्रत को एकादशी तिथि में ही किया जाना चाहिए। इस दिन वामन एकादशी व्रत किया जा सकता है।[1]

व्रत विधि

वामन एकादशी के दिन व्रती को अपने नित्य कार्यों से निवृत्त होने के बाद भगवान वामन का पूजन करना चाहिए और अर्ध्य देते समय निम्न मंत्र का प्रयोग करना चाहिए-

देवेश्चराय देवाय, देव संभूति कारिणे।
प्रभवे सर्व देवानां वामनाय नमो नम:।।

इसकी पूजा करने का एक दूसरा विधान भी है। पूजा के बाद 52 पेड़े और 52 दक्षिणा रखकर भोग लगाया जाता है। फिर एक टोकरी में एक कटोरी चावल, एक कटोरी शरबत, एक कटोरी चीनी, एक कटोरी दही, ब्राह्मण को दान दी जाती है। इसी दिन व्रत का उद्यापन भी करना चाहिए। उध्यापन में ब्राह्माणों को एक छाता, खड़ाऊँ तथा दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। इस व्रत को करने से स्वर्ग कि प्राप्ति होती है।

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वामन एकादशी को 'जयन्ती एकादशी' भी कहते हैं। इस एकादशी का व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है। 'जयन्ती एकादशी व्रत' को करने से नीच पापियों का उद्धार हो जाता है। अगर कोई व्यक्ति 'परिवर्तनी एकादशी' के दिन भगवान श्रीविष्णु की भी पूजा करता है तो उसे भी मोक्ष कि प्राप्ति होती है। वामन एकादशी के फलों के विषय में जरा भी संदेह नहीं है। जो भी व्यक्ति इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा करता है, वह ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों की पूजा करता है। इस एकादशी के व्रत को करने के बाद व्यक्ति के लिए इस संसार में कुछ भी करना शेष नहीं रहता। वामन एकादशी के दिन के विषय में एक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णू जी करवट बदलते हैं। इसी वजह से इस एकादशी को 'परिवर्तिनी एकादशी' भी कहते हैं।
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