वर्ण विचार एवं उच्चारण स्थान
स्वर
इस अध्याय में हम वर्ण विचार के बारे में चर्चा करेगें। वर्ण क्या हैं, इसके कितने भेद हैं आदि।
वर्ण
मुख से निकलने वाली वह छोटी-से-छोटी इकाई जिसके टुकड़े न किए जा सकें अक्षर कहलाती है।
"न क्षरन्ति इति अक्षर:"
जिसका क्षरण (नष्ट) न हो सके वह है अक्षर। तथा इसके लिखित रुप को वर्ण कहते हैं।
जैसे: अ, इ, आ, ई, उ, ऊ, क, ख, आदि।
वर्ण को हम तीन प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं।
1. स्वर
2. व्यञ्जन
3. अयोगवाह
संस्कृत में 13 स्वर, 33 व्यञ्जन तथा 3 अयोगवाह होते हैं।
स्वर
ऐसे वर्ण जिनका उच्चारण स्वतंत्र रुप से किया जा सके, स्वर कहलाते हैं।
जैसे: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ
आप सभी स्वरों का उच्चारण करेगें तो महसूस करेगें कि स्वर को (उच्चारण के आधार पर) तीन रुपों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
स्वरों के भेद
1. हृस्व
2. दीर्घ
3. प्लुत
1. हृस्व स्वर
वे स्वर जिनके उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है, हृस्व स्वर कहलाते हैं।
जैसे: अ, इ, उ, ऋ, लृ
हो सकता है 'मात्रा' शब्द से आपका परिचय न हो।
मात्रा − वर्णों के उच्चारण में लगने वाले समय को मात्रा कहते हैं। अथवा, स्वरों के प्रतीक को भी मात्रा कहते हैं।
2. दीर्घ स्वर
वे स्वर जिनके उच्चारण में दो मात्रा का समय लगता है, दीर्घ स्वर कहलाते हैं।
जैसे: आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
आप हृस्व तथा दीर्घ स्वरों को खुद बोलकर भी इनके बीच का अन्तर समझ पाएंगे।
3. प्लुत स्वर
वे स्वर जिनके उच्चारण में तीन मात्रा का समय लगे, प्लुत स्वर कहलाते हैं।
जैसे: ओउम्
प्लुत स्वर को 'ऊँ' से चिन्हित किया जाता …
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